उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध, एफआईआर से हटेगा जाति का जिक्र: योगी सरकार ने जारी किए सख्त निर्देश

 लखनऊ, 22 सितंबर 2025 : उत्तर प्रदेश सरकार ने जातिगत भेदभाव को जड़ से समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए राज्य में जाति आधारित रैलियों और प्रदर्शनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा, पुलिस की एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, चार्जशीट और अन्य सरकारी दस्तावेजों में किसी व्यक्ति की जाति का उल्लेख अब नहीं किया जाएगा। इन निर्देशों को कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने 21 सितंबर को जारी किया है, जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया आदेश पर आधारित हैं।

यह फैसला हाईकोर्ट की एकलपीठ द्वारा 19 सितंबर को सुनाए गए फैसले के अनुपालन में लिया गया है। जस्टिस विनोद दिवाकर की बेंच ने प्रवीण छेत्री बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में सुनवाई करते हुए एफआईआर और जब्ती मेमो में याचिकाकर्ता की जाति (भील) का उल्लेख करने पर सख्त आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने इसे संवैधानिक नैतिकता के विरुद्ध और समाज को विभाजित करने वाला बताया। हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि पुलिस दस्तावेजों में अभियुक्त, गवाह या मुखबिर की जाति से जुड़े सभी कॉलम हटा दिए जाएं। इसके बजाय, आरोपी की पहचान के लिए माता-पिता दोनों के नाम अनिवार्य रूप से दर्ज किए जाएंगे। कोर्ट ने डीजीपी के हलफनामे में दिए तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि फिंगरप्रिंट, आधार कार्ड, मोबाइल नंबर जैसे आधुनिक साधनों से जाति आधारित पहचान की कोई आवश्यकता नहीं है।

सरकार के 10 बिंदुओं वाले निर्देशों में विस्तृत प्रावधान किए गए हैं। इनके तहत थानों के नोटिस बोर्ड, पुलिस वाहनों और साइनबोर्ड से जाति आधारित संकेत, नारे या प्रतीक हटा दिए जाएंगे। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जाति का महिमामंडन या घृणा फैलाने वाले कंटेंट पर आईटी नियमों के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, एससी/एसटी अत्याचार निवारण एक्ट जैसे कानूनी मामलों में जहां आवश्यक हो, वहां जाति का उल्लेख जारी रहेगा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के सीसीटीएनएस सिस्टम में भी जाति संबंधी कॉलम को खाली छोड़ने या डिलीट करने की अपील की गई है। पुलिस नियमावली में जल्द संशोधन कर इन आदेशों का पालन सुनिश्चित किया जाएगा।

यह कदम राजनीतिक दलों पर गहरा असर डाल सकता है, जहां जाति आधारित रैलियां चुनावी रणनीतियों का अहम हिस्सा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन राजनीतिक विमर्श में बदलाव लाना चुनौतीपूर्ण होगा।

विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया: अखिलेश यादव ने पूछे सवाल

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस फैसले पर सरकार से पांच तीखे सवाल पूछे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा?" साथ ही, वस्त्र, वेशभूषा और प्रतीक चिन्हों से उपजे भेदभाव मिटाने, नाम से पहले जाति पूछने की मानसिकता खत्म करने, किसी का घर धुलवाने की सोच का अंत करने और झूठे आरोप लगाकर बदनाम करने की साजिशों को समाप्त करने के उपायों पर सवाल उठाए। यादव ने कहा कि यह फैसला केवल सतही लगता है और वास्तविक सामाजिक परिवर्तन के लिए गहन प्रयास जरूरी हैं।

सरकार की ओर से अभी तक विपक्ष के सवालों पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, इन निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाएगा। यह कदम उत्तर प्रदेश में जाति-आधारित राजनीति को नया मोड़ दे सकता है, खासकर आगामी चुनावों के संदर्भ में।

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