ट्रंप ने 19 सितंबर 2025 को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें एच-1बी वीजा के लिए कंपनियों को प्रति आवेदन 100,000 डॉलर का भुगतान करना अनिवार्य कर दिया गया। यह नियम मुख्य रूप से उन विदेशी कामगारों पर लागू होता है जो विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में काम करने के लिए अमेरिका आते हैं, जैसे आईटी और इंजीनियरिंग। व्हाइट हाउस ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और अमेरिकी कामगारों के हितों की रक्षा के रूप में पेश किया, दावा किया कि एच-1बी कार्यक्रम का दुरुपयोग हो रहा है, जिससे सस्ते विदेशी श्रमिकों के कारण स्थानीय रोजगार प्रभावित हो रहे हैं। नियम के तहत, अमेरिका के बाहर रहने वाले आवेदकों की पिटीशन पर विचार तभी होगा जब 100,000 डॉलर का भुगतान किया जाए, हालांकि राष्ट्रीय हित में छूट दी जा सकती है।
शुरुआत में इस नियम को लेकर भारी भ्रम फैला। वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने कहा था कि यह शुल्क सालाना होगा, जिससे कंपनियां और कामगार घबरा गए। लेकिन 20 सितंबर को व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलाइन लेविट ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर स्पष्ट किया, "यह सालाना शुल्क नहीं है। यह एक बार का भुगतान है जो केवल नई पिटीशन पर लागू होता है।" उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा एच-1बी वीजा धारक, जो फिलहाल अमेरिका के बाहर हैं, को दोबारा प्रवेश के लिए 100,000 डॉलर नहीं चुकाने होंगे। यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (यूएससीआईएस) ने भी पुष्टि की कि यह नियम केवल 21 सितंबर 2025 के बाद नई, अनफाइल्ड पिटीशन पर लागू होगा और पहले से वैध वीजा या फाइल्ड आवेदनों पर असर नहीं डालेगा। यह स्पष्टीकरण आने के बाद भी, कई कंपनियों ने अपने एच-1बी धारकों को तुरंत अमेरिका लौटने की सलाह दी, जिससे हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी मच गई।
इस नियम का सबसे बड़ा असर भारतीय कामगारों और आईटी कंपनियों पर पड़ रहा है। 2024 में स्वीकृत 3,99,395 एच-1बी वीजाओं में से 71% भारतीयों को मिलीं, जबकि चीन को सिर्फ 11.7%। कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, मेटा और अल्फाबेट ने अपने कर्मचारियों को विदेश यात्रा से बचने और जल्द लौटने का निर्देश दिया। नई दिल्ली से न्यूयॉर्क की एक तरफा फ्लाइट टिकट की कीमतें 37,000 रुपये से बढ़कर 70,000-80,000 रुपये हो गईं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर चिंता जताई और कहा कि इससे परिवारों पर मानवीय प्रभाव पड़ेगा, साथ ही अमेरिका से इस मुद्दे को सुलझाने की उम्मीद जताई। भारतीय दूतावास ने प्रभावित नागरिकों के लिए इमरजेंसी सहायता नंबर जारी किया।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी तेज रहीं। भारत में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंथ रेड्डी और कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने मोदी सरकार से इस पर तुरंत कार्रवाई की मांग की। विपक्षी नेता राहुल गांधी और असदुद्दीन ओवैसी ने विदेश नीति की आलोचना की, कहा कि मोदी सरकार भारतीय हितों की रक्षा में विफल रही। वहीं, ईएसी-पीएम चेयरमैन एस महेंद्र देव ने इसे भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए फायदेमंद बताया। अमेरिका में यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने कंपनियों और कर्मचारियों पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई। टेक उद्यमी एलन मस्क ने एच-1बी वीजा की जरूरत पर जोर दिया, कहा कि इससे टेक सेक्टर में कमी पूरी होती है।
ट्रंप ने एक अलग आदेश में "ट्रंप गोल्ड कार्ड" वीजा की घोषणा भी की, जिसमें कम से कम 10 लाख डॉलर (करीब 8.3 करोड़ रुपये) का भुगतान करने पर तेजी से प्रवेश और संभावित स्थायी निवास का रास्ता मिलेगा। यह नियम एक साल तक लागू रहेगा, जिसके बाद विस्तार पर विचार होगा। पहले 2020 में कोविड-19 के दौरान ट्रंप ने एच-1बी पर प्रतिबंध लगाया था। अब वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल 22 सितंबर को अमेरिका में व्यापार वार्ता करेंगे, जहां यह मुद्दा उठ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अमेरिकी टेक इंडस्ट्री को प्रभावित करेगा, लेकिन भारतीय कंपनियां लोकल हायरिंग बढ़ा सकती हैं और भारत से ग्लोबल डिलीवरी पर फोकस कर सकती हैं। यदि भ्रम पूरी तरह दूर नहीं हुए, तो आने वाले दिनों में और विरोध या बदलाव देखने को मिल सकते हैं।