महागठबंधन में शामिल होगी AIMIM? असदुद्दीन ओवैसी ने लालू को पत्र लिखकर मांगी सीटें

 पटना, बिहार: बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को एक पत्र लिखकर बिहार के विपक्षी 'महागठबंधन' में शामिल होने की इच्छा जताई है और आगामी चुनावों के लिए सीटों की मांग की है। इस पत्र ने राजनीतिक गलियारों में एक नई बहस छेड़ दी है - क्या 'महाग'बंधन' अपने कुनबे को बढ़ाएगा और ओवैसी को साथ लेगा, या फिर पुराने अनुभवों को देखते हुए दूरी बनाए रखेगा?



यह कदम बिहार के राजनीतिक समीकरणों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है, खासकर सीमांचल क्षेत्र में जहां AIMIM ने पिछले चुनावों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी। आइए इस पूरे घटनाक्रम का गहराई से विश्लेषण करते हैं।

ओवैसी के पत्र के मायने और AIMIM की रणनीति

असदुद्दीन ओवैसी का लालू प्रसाद यादव को सीधे पत्र लिखना एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। इसके कई प्रमुख मायने हैं:

  1. सीधे शीर्ष नेतृत्व से संवाद: तेजस्वी यादव के बजाय सीधे लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखकर ओवैसी ने यह संदेश दिया है कि वे गठबंधन के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता के साथ संवाद करना चाहते हैं, जिनके निर्णय को अंतिम माना जाता है।

  2. धर्मनिरपेक्ष वोटों के बिखराव को रोकने की दलील: AIMIM पर अक्सर भारतीय जनता पार्टी (BJP) की 'बी-टीम' होने का आरोप लगता रहा है। उन पर आरोप है कि वे मुस्लिम बहुल सीटों पर उम्मीदवार उतारकर धर्मनिरपेक्ष वोटों का बंटवारा करते हैं, जिससे सीधा फायदा NDA को होता है। पत्र लिखकर ओवैसी यह तर्क दे रहे हैं कि अगर उन्हें गठबंधन में शामिल किया जाता है, तो वे इस बिखराव को रोकने में मदद करेंगे और NDA के खिलाफ एक संयुक्त और मजबूत मोर्चा तैयार होगा।

  3. अपनी राजनीतिक जमीन का दावा: 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटें (अमौर, बायसी, जोकीहाट, कोचाधामन, बहादुरगंज) जीतकर सभी को चौंका दिया था। हालांकि बाद में उनके चार विधायक RJD में शामिल हो गए, लेकिन ओवैसी ने यह साबित कर दिया कि सीमांचल के मुस्लिम मतदाताओं पर उनकी मजबूत पकड़ है। इस पत्र के माध्यम से वे अपनी उसी राजनीतिक ताकत का दावा पेश कर रहे हैं।

महागठबंधन के लिए अवसर या चुनौती?

ओवैसी का प्रस्ताव महागठबंधन, विशेषकर RJD और कांग्रेस के लिए, एक दोधारी तलवार की तरह है। इसके फायदे और नुकसान दोनों हैं:

संभावित लाभ (अवसर):

  • सीमांचल में मजबूती: AIMIM के साथ आने से महागठबंधन को सीमांचल की मुस्लिम बहुल सीटों पर वोटों के बंटवारे का डर खत्म हो जाएगा। यह क्षेत्र, जिसमें कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज जैसे जिले आते हैं, में मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है।

  • NDA के खिलाफ एकजुटता का संदेश: ओवैसी को साथ लेने से राष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश जाएगा कि NDA को हराने के लिए सभी विपक्षी दल, अपनी विचारधारात्मक भिन्नताओं के बावजूद, एक साथ आ रहे हैं।

  • मुस्लिम वोटों का पूर्ण ध्रुवीकरण: AIMIM के गठबंधन में होने से मुस्लिम वोट पूरी तरह से महागठबंधन के पक्ष में लामबंद हो सकता है, जिससे कई सीटों पर जीत-हार का गणित बदल जाएगा।

संभावित हानियाँ (चुनौती):

  • हिन्दू वोटों के phảnध्रुवीकरण का खतरा: ओवैसी की कट्टर मुस्लिम छवि को BJP और NDA हमेशा से मुद्दा बनाते आए हैं। उनके गठबंधन में शामिल होने से NDA को यह प्रचार करने का मौका मिल सकता है कि यह गठबंधन "अतिवादी" और "तुष्टिकरण" की राजनीति कर रहा है। इससे बहुसंख्यक हिन्दू वोटों का महागठबंधन से छिटककर NDA के पक्ष में ध्रुवीकरण हो सकता है।

  • कांग्रेस और अन्य दलों की असहमति: महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और वामपंथी दल ओवैसी की राजनीति के मुखर आलोचक रहे हैं। वे AIMIM को गठबंधन में शामिल करने पर शायद ही आसानी से सहमत हों।

  • विश्वसनीयता का संकट: AIMIM के चार विधायकों के RJD में चले जाने के बाद, गठबंधन के नेता ओवैसी की विश्वसनीयता पर सवाल उठा सकते हैं। उन्हें यह डर हो सकता है कि चुनाव के बाद AIMIM फिर से पाला बदल सकती है।

RJD का दुविधापूर्ण रुख

लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं होगा। 2020 के चुनावों में AIMIM ने कम से कम 15-20 सीटों पर RJD का खेल बिगाड़ा था। इस अनुभव को देखते हुए, वे वोटों का बंटवारा रोकने के लिए ओवैसी को साथ लेना चाहेंगे। लेकिन दूसरी तरफ, उन्हें इस बात का भी डर है कि ओवैसी को साथ लेने से उनके "A to Z" (सभी जातियों और समुदायों को साथ लेकर चलने) के समीकरण को नुकसान पहुंच सकता है और बहुसंख्यक समाज में गलत संदेश जा सकता है।

आगे क्या होगा?

फिलहाल, RJD और महागठबंधन के अन्य दलों ने इस पत्र पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। गेंद अब लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के पाले में है। वे इस प्रस्ताव पर सावधानीपूर्वक विचार करेंगे, इसके नफा-नुकसान का आकलन करेंगे और तभी कोई अंतिम निर्णय लेंगे।

यह तय है कि असदुद्दीन ओवैसी ने यह पत्र लिखकर बिहार की राजनीति में एक नई सरगर्मी पैदा कर दी है। महागठबंधन उन्हें साथ लेता है या नहीं, यह भविष्य में पता चलेगा, लेकिन इस एक कदम ने बिहार चुनाव से पहले राजनीतिक समीकरणों को और भी दिलचस्प बना दिया है।

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