Molitics Reporter राघव त्रिवेदी की वाइरल रिपोर्टिंग के अनुसार बिहार के लगभग हजार एकड़ की जमीन 1 रुपये की लीज पर आगामी 30 सालों के लिए सरकार द्वारा दी गई है कांग्रेस पार्टी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया है कि बिहार सरकार ने भागलपुर जिले के पीरपैंती में अडानी समूह को लगभग 1050 एकड़ जमीन 33 साल की लीज पर एक रुपये प्रतिवर्ष के हिसाब से दी है।
इस मामले पर विभिन्न समाचार रिपोर्टों और कांग्रेस पार्टी के बयानों से मिली जानकारी के आधार पर रिपोर्ट विस्तार से पढ़ें -
दावा है कि बिहार के भागलपुर जिले के पीरपैंती में लगभग 1050 एकड़ जमीन अडानी पावर को एक रुपये प्रतिवर्ष के किराये पर 33 साल के लिए लीज पर दी गई है।
इस जमीन पर 2400 मेगावाट का थर्मल पावर प्लांट बनाया जाना है। इस परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 21,400 करोड़ रुपये है।
अन्य आरोप:
इस जमीन पर लगभग 10 लाख आम, लीची और सागौन के पेड़ लगे हुए थे, जिन्हें काटा जाएगा।
कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया है कि किसानों से उनकी जमीन जबरन या धमकाकर ली गई है, और उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया गया।
पवन खेड़ा ने इसे "डबल लूट" बताया है, यह आरोप लगाते हुए कि पहले किसानों की जमीन लूटी गई, और फिर उसी प्लांट से उत्पादित बिजली बिहार के लोगों को 6 रुपये प्रति यूनिट की दर से बेची जाएगी।
उन्होंने यह भी कहा कि इस परियोजना की घोषणा पहले केंद्रीय बजट में सरकार द्वारा किए जाने की बात थी, लेकिन बाद में इसे एक निजी कंपनी को सौंप दिया गया।
सरकार और अडानी समूह का पक्ष:
इस मामले पर बिहार सरकार या अडानी समूह की तरफ से सीधे कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस तरह के मामलों में अक्सर सरकारें निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रोत्साहन पैकेज (incentive packages) देती हैं। बिहार सरकार की औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन नीति 2025 जैसी योजनाएं भी हैं, जिसके तहत बड़े निवेशकों को 100 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश पर 25 एकड़ तक जमीन या एक रुपये की टोकन मनी पर 10 एकड़ जमीन देने का प्रावधान है। संभव है कि इस तरह के किसी प्रावधान के तहत यह सौदा हुआ हो।
ऐसा भी हो सकता है की ऐसी योजनाएं कुछ चुनिंदा व्यापार समूहों को ही लाभ पहुंचाने के लिए ही बनाई जाती हों जिस प्रकार गडकरी जी की E20 इथेनॉल ईंधन नीति,
विश्लेषण -
सांकेतिक किराया (Token Rent): एक रुपये का वार्षिक किराया एक सांकेतिक राशि है, जो अक्सर सरकारी योजनाओं या समझौतों में उपयोग की जाती है। इसका मतलब यह नहीं है कि जमीन का कोई मूल्य नहीं है। यह अक्सर इस तरह के बड़े निवेशों को आकर्षित करने के लिए किया जाता है, जहाँ कंपनी परियोजना में हजारों करोड़ रुपये का निवेश करती है और रोजगार पैदा करती है। सरकार को इस तरह के निवेश से राजस्व (revenue) और आर्थिक लाभ (economic benefits) अप्रत्यक्ष रूप से मिलते हैं।
विवाद: इस सौदे को लेकर मुख्य विवाद का कारण यह है कि इतनी बड़ी जमीन एक निजी कंपनी को इतने कम किराये पर क्यों दी गई, और यह भी कि इससे किसानों और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस का आरोप है कि यह सौदा अडानी समूह के पक्ष में है और इससे आम जनता को कोई खास लाभ नहीं होगा।
संक्षेप में, यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, जिसमें कांग्रेस पार्टी भी सरकार पर आरोप लगा रही है कि उसने अपने पसंदीदा उद्योगपति को अनुचित लाभ पहुँचाया है, जबकि सरकार का पक्ष यह हो सकता है कि यह एक बड़ा निवेश है जो राज्य के विकास और रोजगार के लिए आवश्यक है, लेकिन यदि इन आरोपों के अनुसार ही बिहार सरकार की भी अडानी समूह को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुँचाने की मंशा है तो ये बिहार की जनता के साथ सरासर नाइंसाफी है, फिलहाल मामले की पूरी सच्चाई और सभी पक्षों की जानकारी, आधिकारिक बयान आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी।