कारगिल युद्ध में लड़ते हुए शहीद हुए नायब सूबेदार लायक सिंह की शहादत के 21 साल बीत हो चुके हैं लेकिन वहां का स्थानीय प्रशासन अभी तक शहीद के परिवार को मिला 10 बीघा पट्टे की जमीन का कब्ज़ा दिलाने में नाकाम रहा है।परिजनों ने जमीन पर कब्ज़ा पाने के लिए विभिन्न स्टारों पर शिकायत भी की लेकिन उनकी शिकायतों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। 21 साल पहले जब भारतीय सेना के योद्धा नायब सूबेदार लायक सिंह कारगिल युद्ध लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए थे तब से आज तक उनके परिवार का हाल जानने के लिए मात्र एक एसडीएम पहली शहादत दिवस पर आये थे जिसके बाद से न तो प्रशासन ने कभी शहीद के परिजनों की तरफ ध्यान दिया न ही किसी राजनेता या मंत्री ने। शर्म की बात तो ये है की शहीद के शहादत से अब तक कई सरकारें सत्ता में आई और गई लेकिन किसी का भी ध्यान शहीदों के परिजनों पर नहीं गया। शहीद नायव सूबेदार लायक सिंह के भाई सत्येंद्र बताते हैं की प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से मा रामश्री को पेंशन और आवास का आश्वासन मिला था लेकिन माँ की पूरी जिंदगी गुजर गयी और उनका चार साल पहले देहांत हो गया लेकिन अभी तक प्रशासन की तरफ से आश्वासनों को पूरा करने की पहल भी नहीं की गई और न ही सैनिक बोर्ड ने कभी शहीद के परिजनों की समस्याओं को जानने समझने का प्रयत्न किया।प्रशासन द्वारा इन लापरवाहियों से स्पष्ट है की प्रशासन और सरकारें देश की सुरक्षा में शहीदों के योगदान को लगभग भूल चुके हैं।
भले ही प्रशासन और सरकार देश की सेवा करते हुए शहीद हुए जवानों के योगदान को भूल चुकी हो लेकिन कारगिल की जंग में शहीद हुए कोरथ गांव के नायब सूबेदार लायक सिंह अपने भतीजे सचिन व भतीजी प्रगति की यादों में अभी भी जीवित हैं। दोनों बच्चे शहीद सैनिक के साथ बिताये हुए दिन आज भी याद करते है और उनके पदचिन्हों पर चलते हुए देश की सेवा करने हेतु सेना में जाना चाहते हैं। शहीद नायब सूबेदार लायक सिंह अपने परिवार के नज़रों में ईश्वर से कम नहीं हैं मां रामश्री जब तक जीवित थी तब तक अपने शहीद बेटे को स्मारक में रोज भोग लगाती थी। छोटे भाई सत्येंद्र और उनकी पत्नी रजनी और बच्चे आज भी ईश्वर की तरह शहीद की पूजा करते हैं।
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