चीन के प्रीमियर ली स्ट्रॉन्ग ने रविवार को घोषणा की कि K-वीजा को मौजूदा 12 सामान्य वीजा श्रेणियों में जोड़ा जाएगा। यह वीजा STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथेमेटिक्स) क्षेत्रों के स्नातकों और प्रारंभिक करियर रिसर्चर्स के लिए उपलब्ध होगा, जिनके पास मान्यता प्राप्त संस्थान से कम से कम बैचलर डिग्री हो। K-वीजा में मल्टीपल एंट्री, लंबी वैलिडिटी और विस्तारित स्टे पीरियड की सुविधा होगी, जो अमेरिकी H-1B से कहीं अधिक लचीला है।
यह कदम अमेरिका के हालिया H-1B वीजा फैसले का सीधा जवाब माना जा रहा है, जहां फीस में भारी इजाफे से भारतीय और अन्य देशों के आईटी प्रोफेशनल्स में हड़कंप मच गया है। ट्रंप प्रशासन ने H-1B आवेदन फीस को 460 डॉलर से बढ़ाकर 2,805 डॉलर कर दिया है, जिससे कई कंपनियां विदेशी टैलेंट हायर करने से हिचक रही हैं। चीन सरकार ने इस पर सीधे टिप्पणी तो नहीं की, लेकिन K-वीजा को 'ग्लोबल टैलेंट वेलकम' का हिस्सा बताया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का यह रणनीतिक कदम उसकी 'मेड इन चाइना 2025' पहल को मजबूत करेगा, जहां AI, बायोटेक और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में विदेशी विशेषज्ञों की भारी जरूरत है। गल्फ न्यूज के अनुसार, यह वीजा युवा प्रोफेशनल्स को चीन में काम करने और रहने के लिए आसान बनाएगा, खासकर उन लोगों के लिए जो अमेरिकी बाजार से बाहर हो रहे हैं।
चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि K-वीजा सभी उद्योगों और देशों से टैलेंट को आमंत्रित करेगा, बिना किसी भेदभाव के। आवेदन प्रक्रिया ऑनलाइन होगी और प्रोसेसिंग टाइम को न्यूनतम रखा जाएगा। हालांकि, कुछ विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि चीन की सख्त सेंसरशिप और राजनीतिक माहौल विदेशी टैलेंट को आकर्षित करने में बाधा बन सकता है।
यह घोषणा वैश्विक टैलेंट वॉर को नया मोड़ दे रही है, जहां अमेरिका की सख्ती से चीन जैसे देश फायदा उठाने की होड़ में हैं।