तिरंगे का अपमान : तिरंगे से आंदोलनकारियों को पीटने वाले पुलिसकर्मी पर कोई कार्रवाही नही

 पटना, 20 सितंबर 2025 (स्पेशल डेस्क): 15 सितंबर को पटना में बिहार पुलिस कांस्टेबल भर्ती की मांग को लेकर हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस की कार्रवाई विवादों में घिर गई है। सैकड़ों नौकरी के इच्छुक युवाओं ने दक बंगला चौराहे से मुख्यमंत्री आवास की ओर मार्च किया, जहां बैरिकेड तोड़ने और ट्रैफिक बाधित करने पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस दौरान सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में एक पुलिस अधिकारी को तिरंगे को लहराते हुए प्रदर्शनकारियों पर वार करते दिखाया गया, जिसे युवाओं ने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान बताया। पुलिस का कहना है कि यह भीड़ नियंत्रण के लिए आवश्यक था, लेकिन रिपोर्ट्स और वीडियो इसकी पुष्टि करते हैं कि तिरंगे का अपमान हुआ।


क्या यह तिरंगे का अपमान है?

यह घटना भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को अपमानित करने की श्रेणी में आ सकती है। वीडियो फुटेज में स्पष्ट रूप से एक पुलिस अधिकारी को प्रदर्शनकारियों के हाथों से तिरंगा छीनते और उसे हथियार की तरह लहराते हुए छात्रों की ओर दौड़ते देखा गया। यह दृश्य पटना के दक बंगला इलाके का है, जहां युवा शांतिपूर्ण मार्च कर रहे थे और तिरंगे को लहरा रहे थे। सोशल मीडिया पोस्ट्स और न्यूज रिपोर्ट्स में इसे "राष्ट्रीय ध्वज का अपमान" करार दिया गया है। एक वायरल वीडियो में दिखाया गया कि अधिकारी ने तिरंगे को पकड़कर छात्रों को भगाने के लिए इस्तेमाल किया, जो सार्वजनिक स्थान पर ध्वज को "defile" (अपवित्र) या "disrespect" (अपमान) करने के समान है।

हालांकि, पुलिस ने इसे नकारा है। पटना एसएसपी कर्तिकेय के. शर्मा ने कहा कि कार्रवाई "हल्की" थी और कोई गंभीर चोट नहीं लगी, लेकिन तिरंगे की घटना पर स्पष्ट टिप्पणी नहीं की। विपक्षी नेता और युवा संगठनों ने इसे "देशभक्ति का अपमान" बताते हुए जांच की मांग की है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल और मानवाधिकार संगठनों ने भी पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं।

अगर यह तिरंगे का अपमान है, तो पुलिसकर्मी पर कैसी विधिक कार्रवाई होनी चाहिए?

भारतीय कानून के अनुसार, राष्ट्रीय ध्वज का अपमान एक गंभीर अपराध है, जो Prevention of Insults to National Honour Act, 1971 की धारा 2 के तहत दंडनीय है। इस कानून का उद्देश्य राष्ट्रीय प्रतीकों की गरिमा बनाए रखना है, और यह किसी भी व्यक्ति पर लागू होता है – चाहे वह आम नागरिक हो या पुलिस अधिकारी।

  • कानूनी प्रावधान: धारा 2 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर या सार्वजनिक दृष्टि में तिरंगे को "मutilates, defiles, defies, tramples upon, or otherwise shows disrespect to or brings into contempt (whether by words or acts)" करता है, तो यह अपराध है। यहां तिरंगे को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना "disrespect by acts" की श्रेणी में आता है।
  • दंड:
    • अधिकतम 3 वर्ष की कैद।
    • जुर्माना।
    • या दोनों।
  • कार्रवाई की प्रक्रिया:
    1. शिकायत दर्ज: कोई भी नागरिक (जैसे प्रभावित युवा या संगठन) स्थानीय थाने में FIR दर्ज करा सकता है। यदि पुलिस FIR न दर्ज करे, तो मजिस्ट्रेट कोर्ट में सीधे शिकायत की जा सकती है (CrPC धारा 156(3) या 200 के तहत)।
    2. जांच: पुलिस या विशेष जांच टीम (जैसे CBI यदि उच्च स्तर पर हो) वीडियो, गवाहों और फॉरेंसिक सबूतों की जांच करेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट जैसे मामलों में (2024 का केस जहां केक पर तिरंगे का चित्रण अपमान माना गया) कोर्ट ने तुरंत संज्ञान लिया।
    3. ट्रायल: मजिस्ट्रेट कोर्ट में सुनवाई, जहां आरोपी को बरी होने का मौका मिलेगा यदि साबित हो कि इरादा अपमान का नहीं था (जैसे नियंत्रण के लिए)। लेकिन वीडियो सबूत मजबूत हैं।
    4. पुलिस-विशिष्ट कदम: बिहार पुलिस विभागीय जांच (Departmental Inquiry) करेगा, जिसमें निलंबन, पदावनति या बर्खास्तगी हो सकती है। यदि दोषी पाया गया, तो IPC की धारा 153A (समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना) या 505 (सार्वजनिक शांति भंग) भी जोड़ी जा सकती है।
    5. उदाहरण: 2021 में एक केस में तिरंगे को जलाने पर 2 वर्ष की सजा हुई। पुलिस मामलों में (जैसे 2019 का एक घटना जहां अधिकारी ने तिरंगे को फाड़ा) विभागीय सजा के साथ आपराधिक मुकदमा चला।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में तत्काल FIR और वीडियो को सबूत के रूप में पेश करने से कार्रवाई तेज हो सकती है। युवा संगठनों ने हाईकोर्ट में PIL दायर करने की योजना बनाई है। सरकार को युवाओं की मांगें (रिक्तियां घोषित करना) पूरी कर ऐसी घटनाओं को रोकना चाहिए।

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