वैश्विक तकनीकी दौड़ में भारत का खोया मौका: जापान-अमेरिका की नवाचार यात्रा, चीन की चालाकी और भारत के युवाओं का सरकारी नौकरी का सपना

 नई दिल्ली, 2 अक्टूबर 2025 | वैश्विक तकनीकी क्रांति के दौर में जब जापान और अमेरिका भविष्य की तकनीकों पर अरबों डॉलर झोंक रहे हैं, तो चीन अपनी जासूसी और नकल की रणनीति से उनसे आगे निकलने की होड़ में लगा है। लेकिन भारत? यहां के युवा लाखों की संख्या में सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, जहां 10,000 रुपये का काम करके 80,000 की सैलरी लेने का सपना देखा जाता है, और ऊपरी कमाई के नाम पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। यह विडंबना नहीं, तो और क्या है? एक गहन विश्लेषण में हम देखेंगे कि कैसे वैश्विक शक्तियां नवाचार की दौड़ में भारत को पीछे छोड़ रही हैं, और हमारे युवा राष्ट्र को खोखला करने वाले तंत्र का हिस्सा बन रहे हैं।

भविष्य की तकनीक का जापानी सपना

जापान, जो हमेशा से रोबोटिक्स और ऑटोमेशन का गढ़ रहा है, 2025 में अपनी 'एक्सपो 2025' के जरिए दुनिया को भविष्य की झलक दिखा रहा है। ओसाका में आयोजित इस मेले में रोबोट्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और उन्नत संचार प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन हो रहा है, जो मानव जीवन को और अधिक कुशल बनाने का वादा कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, टोयोटा की 'वोवन सिटी' परियोजना, जो हाल ही में लॉन्च हुई, एक लिविंग लेबोरेटरी है जहां मोबिलिटी का भविष्य परीक्षित हो रहा है – स्वायत्त वाहन, स्मार्ट सिटी सॉल्यूशंस और हरित ऊर्जा पर आधारित। इसके अलावा, फुजित्सु सीईएटीईसी 2025 में मानव वृद्धि (ह्यूमन ऑगमेंटेशन) वाली एआई तकनीकों का प्रदर्शन कर रहा है, जो स्वास्थ्य और उत्पादकता को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाली हैं।

जापान की यह प्रगति रैंडम नहीं है। देश ने 2025 में एआई इंफ्रास्ट्रक्चर पर 135 अरब डॉलर का निवेश किया है, जिसमें 2.1 गीगावाट डेटा सेंटर और क्वांटम कंप्यूटिंग शामिल हैं। स्टार्टअप्स जैसे स्मार्टएचआर (मानव संसाधन एआई) और एनिमोका ब्रांड्स जापान (ब्लॉकचेन गेमिंग) जैसे नवोन्मेषक 2025 की टॉप लिस्ट में हैं। यहां युवा नौकरी की तलाश में नहीं, बल्कि नवाचार के लिए काम कर रहे हैं। बियोनिकएम का 'बायो लेग' प्रोस्थेटिक घुटना, जो सीईएस 2025 में दिखाया गया, विकलांगों के लिए क्रांतिकारी साबित हो रहा है। जापान की लॉजिस्टिक्स सेक्टर में एआई और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल रीयल-टाइम कनेक्टिविटी ला रहा है, जो वैश्विक सप्लाई चेन को मजबूत कर रहा है। कुल मिलाकर, जापान की रणनीति 'सॉफ्ट पावर' पर आधारित है – जहां तकनीक मानवीय मूल्यों से जुड़ी हो।

RnD का साम्राज्य, -

अमेरिका, दुनिया का आरएंडडी (रिसर्च एंड डेवलपमेंट) लीडर, 2023 में ही 940 अरब डॉलर खर्च कर चुका था, जो 2025 में और बढ़ा है। ट्रंप प्रशासन की एफवाई 2027 आरएंडडी प्राथमिकताओं में उभरती तकनीकें जैसे एआई, क्वांटम साइंस, ऊर्जा और स्पेस को प्राथमिकता दी गई है। व्हाइट हाउस का नया मेमो क्लाइमेट और इक्विटी से हटकर राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक प्रतिस्पर्धा पर शिफ्ट दिखाता है। निजी क्षेत्र का योगदान भी उल्लेखनीय है – 2001 से 2021 के बीच कॉर्पोरेट आरएंडडी 299 अरब से 602 अरब डॉलर हो गया, और यह ट्रेंड 2025 में जारी है।

सीआईपीएस एक्ट के तहत सेमीकंडक्टर आरएंडडी पर 540 अरब डॉलर का निवेश अमेरिकी विनिर्माण को मजबूत कर रहा है। लेकिन चुनौती चीन से है – अमेरिका अब 'गोल्ड स्टैंडर्ड साइंस' पर जोर दे रहा है, जहां फेडरल फंडिंग को टारगेटेड मिशन-ड्रिवन बनाया जा रहा है। युवा वर्कफोर्स को टेक-सेवी बनाने के लिए स्केलेबल रिसर्च इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित हो रहा है। अमेरिका की ताकत यह है कि यहां नवाचार निजी क्षेत्र से जुड़ा है, जो जोखिम लेने को प्रोत्साहित करता है।

चीन: चोरी और नकल से 'मेड इन चाइना 2025' की सफलता

जबकि जापान और अमेरिका निवेश पर भरोसा कर रहे हैं, चीन की रणनीति अलग है – जासूसी, साइबर हैकिंग और तकनीकी चोरी। 2025 में 'फैंटम टॉरस' जैसे चीनी-लिंक्ड हैकिंग ग्रुप्स ने दूतावासों, टेक फर्म्स और कानूनी संस्थानों को निशाना बनाया है, जहां पूरे डेटाबेस चुराए जा रहे हैं। 'सॉल्ट टाइफॉन' कैंपेन ने अमेरिकी फाइल्स और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी चुराई, जो ब्रिटेन और सहयोगियों तक फैली। एफबीआई के अनुसार, चीन का खतरा आर्थिक जासूसी, आईपी चोरी और साइबर घुसपैठ पर आधारित है।

जापान भी निशाने पर है – चीनी हैकर्स ने टेक और लॉ फर्म्स से नेशनल सिक्रेट्स चुराए। सीआईएसए की रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीनी एपीटी एक्टर्स ने आईटी, एनर्जी जैसे सेक्टर्स में घुसपैठ की। 'मेड इन चाइना 2025' प्लान इसी चोरी पर टिका है – अमेरिका-जापान में काम करने वाले चीनी इंजीनियर तकनीक चुराकर घर लौटते हैं, नकल करते हैं और उससे बेहतर बनाते हैं। एक उदाहरण: औद्योगिक जासूसी के जरिए चुराई गई प्रोप्राइटरी टेक्नोलॉजी से चीनी फर्म्स ने वैश्विक बाजार हथिया लिया। यह रणनीति सस्ती है, लेकिन नैतिक रूप से दिवालिया – फिर भी प्रभावी, क्योंकि चीन अब एआई और क्वांटम में अमेरिका को चुनौती दे रहा है।

भारत में सरकारी नौकरी का भ्रम और भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह

इसके उलट, भारत के युवा बेरोजगारी के दलदल में फंसे हैं। 2025 में जहां लाखों युवा सरकारी नौकरियों के लिए संघर्षरत हैं। जहां परीक्षा पेपर लीक और भर्ती में भ्रष्टाचार आम है। युवा 10,000 रुपये के काम पर 80,000 की सैलरी और लाखों की 'उपरी आमदनी' का सपना देखते हैं, जो राष्ट्र को खोखला करने वाला है।

एक सर्वे में 95% युवाओं ने माना कि बेरोजगारी ने भ्रष्टाचार और बेईमानी बढ़ाई है। राज्यों में नौकरी के लिए रिश्वत और घोटाले आम हैं। विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, भारत का बेरोजगारी दर 2% है, लेकिन युवाओं में यह कहीं ज्यादा। भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का चक्र चल रहा है – जहां पारदर्शी भर्ती की कमी से निजी क्षेत्र में विश्वास घटता है। युवा परिवर्तन ला रहे हैं, लेकिन भारत में भ्रष्टाचार से युवा कुंठित हैं।

यह असमानता संरचनात्मक है। जापान-अमेरिका में शिक्षा नवाचार-केंद्रित है, जहां आरएंडडी जीडीपी का 3-4% है। चीन की चोरी रणनीति अल्पकालिक लाभ देती है, लेकिन लंबे में आईपी चोरी से वैश्विक बहिष्कार का खतरा है। भारत में समस्या शिक्षा और नीतियों में है – जहां 50% युवा ग्रेजुएट्स नौकरी-योग्य नहीं माने जाते। सरकारी नौकरियां (केवल 1% रोजगार) पर फोकस स्टार्टअप कल्चर को दबा रहा है। भ्रष्टाचार बेरोजगारी को बढ़ावा देता है।

भारत को आरएंडडी पर जीडीपी का 2% निवेश – एआई, क्वांटम पर फोकस। स्किल इंडिया को मजबूत कर निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित। भ्रष्टाचार-रोधी सख्त कानून – डिजिटल भर्ती और ट्रांसपेरेंसी। युवाओं को सरकारी नौकरी का भ्रम तोड़कर स्टार्टअप्स की ओर मोड़ना होगा। अन्यथा, जबकि दुनिया भविष्य बनाएगी, भारत अतीत के जाल में फंसा रहेगा।

यह समय है जागृति का। क्या भारत के युवा राष्ट्र-निर्माता बनेंगे, या भ्रष्ट तंत्र का शिकार?

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