फिर हल्की सी चरचराहट


हल्की सी रोशनी दिख रही थी उसे लग रहा था शायद वो दुनिया देखने वाला है फिर हल्की सी चरचराहट  के साथ वो गोल सा अंडा टूट गया और उसमे से एक नन्ही सी जान बाहर आई उस के आस पास अंडे के बाहरी आवरण बिखरे हुए थे उसने सिर उठा कर इधर उधर देखा उसके मम्मी पापा भाई और बाकी सब रिश्तेदार भरे हुए थे एक छोटी सी वर्गाकार जगह में तभी एक आदमी आता है और उनके खाने पीने का इंतजाम कर जाता है वो खा पी कर आराम करता है और फिर खाता है बस खाना सोना और थोड़ी सी चहलकदमी  इसी में पूरा दिन गुजर जाता है प्रतिदिन की यही दिनचर्या हो जाती है और उसे पता ही नहीं चलता कि कुछ महीने बीत चुके होते है शायद उसे नहीं पता था उसके जीवन का अंत कैसे होने वाला है उसका वजन हर महीने बढ़ रहा था उसके कुछ दोस्त बन चुके थे एक दिन कुछ लोग आए और उसके दोस्तों को उठा ले गए कुछ अफवाहें, कुछ सच्चाई और कुछ मनगढ़ंत कहानियों की खिचड़ी सी उसके दिमाग में पक रही थी शायद उससे किसी ने कहा हो की अब वो दोस्त कभी नहीं आएंगे अपने दोस्तों के बारे में सोच कर उसका सिर फटा जा रहा था फिर उसने अपना पुराना कार्यक्रम शुरू किया खाना सोना और थोड़ी सी चहलकदमी लेकिन अब वो थोड़ा घबराया सा रहने लगा था मानो उसके दोस्तों की कमी उसे खल रही थी। जैसे जैसे दिन बीतते गए उसका वजन और भी बढ़ता गया आज वो सोच रहा था कहीं मुझे भी ना वो लोग लेते जाए फिर मेरा क्या होगा ये सब वो सोच ही रहा था तभी उसने देखा कुछ लोग उसकी तरफ आ रहे थे वहीं चेहरा वही आंखें वही लंबाई चौड़ाई वो समझ चुका था आज के बाद शायद मै कभी देख पाऊं कुछ खा पाऊ लगता था अचानक दरवाजा खुला और उसने देखा वो लोग फिर से उसके दोस्तों को पकड़ रहे थे फिर एक हाथ उसकी तरफ भी बढ़े और वो भी शामिल हो गया उन्हें एक छोटे से ट्रक में समान की तरह लाद दिया गया और उसने अपने जीवन में पहली बार एक सड़क देखी आते जाते वाहनों को देख कर उसके मन में शायद जिज्ञासा हो रही थी या शायद वो डरा हुआ था अचानक से ट्रक रुका और वे उन्हें ट्रक से निकाल कर फिर से एक वर्गाकार छोटी सी जगह पर ठूंस ठूंस के भर रहे थे मै वहीं से गुजर रहा था और पता नहीं क्यों पर वहीं मेरे कदम रुक से गए मुझे पता था उनका क्या होगा कुछ लोग खड़े थे उनकी जेब में पैसे थे और वे बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उन मरे हुए हुए जीवों के लाशों के टुकडों को खरीदने का किसी को अपने बाइसेप्स ट्राइसेप और चेस्ट की मांसपेशियों को बड़ा करना था। किसी को अपनी जीभ छौंकनी थी तो किसी को तो ये भ्रम था कि उनकी खांसी भी उससे ठीक हो जाएगी। उन मेरे हुए जीवों के टुकड़े सबको औषधि और अमृत समान लग रहे थे वर्गाकार जालीनुमा जगह में बंद वो जीव लगातार अपने दोस्तों की चीखें सुन रहा था वो डरा सहमा धीरे धीरे एक एक कदम पीछे की तरफ बढ़ा रहा था मानो वो ये सोच रहा हो कि ऐसा करने से   शायद  वो अपनी जिंदगी में कुछ और मिनट जोड़ सकता है हर बीस मिनट में खून से सना हुआ पंजा आता और एक को लेकर चला जाता वो अपने दोस्तो को जाते देख वो भी इंतजार करने लगा अपनी बारी का कुछ देर बाद अब सिर्फ को बचा था अपने अगला नंबर उसका था और फिर उसे भी ले जाया गया वो डर के चीख रहा था और शायद वो अपनी जिंदगी की भीख मांग रहा था शायद उसे लग रहा था कि कोई मदद करे के लेकिन उस कहां पता था कि वो लोग उन हाथों को पैसे देते है जो हाथ उसकी गर्दन पर छूरी चलाने वाला है अचानक उस हाथ की पकड़ और मजबूत हुई और उन पेशेवर पंजों ने उसकी गर्दन पर छूरी फर दिया  उस छूरी ने शायद उसकी श्वासनली को काट दिया था दर्द के मारे उसकी फटी हुई आधी अधूरी चीखें रुकने का नाम नहीं ले रही थी उसका सारा खून जमीन पर था अब उसकी आंखो के सामने हल्का हल्का सा अंधेरा छा रहा था और वो अपने नश्वर शरीर को महसूस नहीं कर पा रहा था उसका विरोध भी अब शांत हो चुका था और उसका अस्तित्व अंधकार और रोशनी के बीच लगभग शून्य हो चुका था उसके शरीर के  अंतिम संस्कार की तैयारी भी विचित्र ढंग से की जा रही थी उसकी चमड़ी हटा के मांस के टुकड़ों को पॉलीबैग में रख कर तराजू पर तौला जा रहा था लोग उन टुकड़ों को खुशी खुशी अपने घर ले जा रहे थे पॉलिबैग में रखे मांस के टुकड़े सहित वो अपने अपने घरों में पहुंच चुके थे कूकर में रखा तेल अब गर्म हो चुका था उन मांस के टुकड़ों को पकाने के लिए कुछ मिनट बीत चुके थे उस अभागे जीव का मांस एक डाइनिंग टेबल पर रखे प्लेटों में परोसा जा चुका था खाने बैठे लोग मांस के टुकड़ों को बड़े ही चाव से खा रहे थे खाने के बाद परिवार के सभी सदस्य ठीक उसी तरह साबुन से रगड़ रगड़ कर हाथ धो रहे थे जैसे शौच से आने के बाद धोते है रात हो चली थी लोग अपने अपने बिस्तर पर थे। हर सुबह की तरह आज भी सूरज की किरणें अंधेरे को चीरते हुए धरती पर पड़ रही थीं आज मंगलवार का दिन था जो कोमल हाथ कल रात को मांस के टुकड़े पका कर परोस रहे थे स्नान के बाद आज वही हाथ पूजाघर की साफ सफाई और साज सज्जा में लगे थे शायद वो अपने आप को स्वच्छ और पाप रहित समझ रही थीं और ईश्वर की भी ना जाने क्या इच्छा थी फिर से हल्की सी रोशनी, फिर से दुनिया देखने की उत्सुकता और फिर हल्की सी चरचराहट..............................(.- -.. .. - -.-- .-   ... .-. .. ...- .- ... - .- ...- .-)

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने