नई दिल्ली | 1 अक्टूबर, 2025 रिलायंस जियो इन्फोकॉम (RJIL) और भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) के बीच 2014 से चली आ रही टावर साझेदारी ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की 2025 की रिपोर्ट ने दावा किया कि BSNL की बिलिंग लापरवाही से सरकार को ₹1,757.56 करोड़ का नुकसान हुआ, क्योंकि जियो ने BSNL के पैसिव इंफ्रास्ट्रक्चर (टावरों) का इस्तेमाल किया बिना पूर्ण भुगतान के। हालांकि, BSNL और दूरसंचार मंत्रालय ने इसे 'गलत व्याख्या' बताते हुए खारिज कर दिया है। क्या यह निजी कंपनी का सरकारी संसाधनों पर 'अनुचित उपभोग' था, या आपसी समझौते का हिस्सा?
आइए विस्तार से समझते हैं इस विवाद की पूरी परतें।रिलायंस जियो की शुरुआत 2007 में हुई, लेकिन इसका व्यावसायिक लॉन्च 2016 में हुआ। उस समय 4G नेटवर्क के लिए पूरे देश में कवरेज सुनिश्चित करना चुनौती था। इसी क्रम में मई 2014 में BSNL के साथ मास्टर सर्विस एग्रीमेंट (MSA) पर हस्ताक्षर हुए। यह समझौता 'पैसिव इंफ्रास्ट्रक्चर शेयरिंग' पर आधारित था, जिसमें BSNL के मौजूदा टावरों (लगभग 4,000) को जियो ने किराए पर लिया। इसका फायदा जियो को यह मिला कि बिना नए टावर लगाए ही देशभर में सिग्नल पहुंचा सके।
MSA रेसिप्रोकल (परस्पर) था, यानी BSNL भी जियो के इंफ्रा का इस्तेमाल कर सकता था। लेकिन CAG रिपोर्ट के अनुसार, जियो ने BSNL के संसाधनों का 'अधिक उपभोग' किया। रिपोर्ट में कहा गया कि जियो ने 2014-2024 के बीच BSNL के ग्राउंड-बेस्ड टावरों (₹35,000 प्रति माह) और रूफटॉप टावरों (₹21,000 प्रति माह) का इस्तेमाल किया, लेकिन BSNL ने सही बिलिंग नहीं की। वॉल्यूम डिस्काउंट के तहत दरें तय हुई थीं, यदि जियो 1,500 टावरों का कमिटमेंट देता। CAG ने इसे 'सरकारी संपत्ति का निजी लाभ' बताया, जिससे जियो को अनुचित फायदा मिला।
किराया भुगतान: आंशिक या अधूरा? CAG vs BSNL का विवाद
CAG की रिपोर्ट नंबर 1 (2025) में स्पष्ट कहा गया कि BSNL ने 10 सालों में जियो से पूर्ण किराया वसूलने में नाकाम रही। अनुमानित नुकसान ₹1,757.56 करोड़ का था, जिसमें बिलिंग लापरवाही, अनुबंध की अस्पष्टता और 4G उपकरणों के लिए अतिरिक्त चार्जेस शामिल थे। रिपोर्ट के अनुसार, जियो ने 2016-2020 के बीच आंशिक भुगतान किया—₹171.81 करोड़ (2016-17), ₹472.80 करोड़ (2017-18), ₹678.38 करोड़ (2018-19) और ₹402.28 करोड़ (2019-20)—लेकिन उसके बाद बिलिंग रुक गई। CAG ने इसे 'नियोजन और अनुबंधीय अनुपालन में चूक' करार दिया।
हालांकि, BSNL ने अप्रैल 2025 में जारी बयान में CAG के दावे को सिरे से खारिज किया। कंपनी का तर्क था कि MSA रेसिप्रोकल होने से कोई राजस्व हानि नहीं हुई, क्योंकि BSNL ने भी जियो के इंफ्रा का फायदा उठाया। अप्रैल 2025 में संसद में पेश CAG रिपोर्ट पर विवाद बढ़ा, लेकिन जुलाई 2025 में राज्यसभा में दूरसंचार राज्य मंत्री ने स्पष्ट किया कि 'CAG का अनुमान अनुबंध खंड की गलत व्याख्या पर आधारित था। सुधार जारी किया गया है, और वास्तविक हानि शून्य है।' BSNL ने 31 जनवरी 2025 को MSA में एडेंडम साइन किया, जिसमें 4G के लिए TDD और FDD टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर चार्जेस तय हुए। मंत्रालय के अनुसार, अब बिलिंग प्रक्रिया सुचारू है, और जियो ने सभी बकाया साफ कर दिए हैं।जियो अभी भी BSNL के टावरों का उपयोग कर रहा है। MSA 10-15 साल का था, और 2025 के एडेंडम के बाद यह और मजबूत हुआ। BSNL के पास वर्तमान में 1 लाख से अधिक टावर हैं, जिनमें से एक हिस्सा जियो के साथ शेयर किया जा रहा है। जियो ने खुद 3 लाख से अधिक टावर लगा लिए हैं, लेकिन ग्रामीण और दूरदराज इलाकों में BSNL के संसाधन उपयोगी साबित हो रहे हैं। BSNL अपनी 4G/5G रोलआउट (दिसंबर 2025 तक दिल्ली-मुंबई में 5G) पर फोकस कर रही है, लेकिन शेयरिंग जारी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह साझेदारी दोनों के लिए फायदेमंद है—जियो को किफायती विस्तार मिलता है, जबकि BSNL को राजस्व। लेकिन CAG जैसी रिपोर्टें सवाल उठाती हैं कि क्या सरकारी संसाधनों का निजी कंपनियों को 'सस्ता किराया' देना उचित है? दूरसंचार विशेषज्ञ प्रणभ मिश्रा कहते हैं, "यह समझौता 2014 का था, जब जियो नया था। अब 5G युग में नए नियम जरूरी हैं।"यह विवाद टेलीकॉम सेक्टर में सार्वजनिक-निजी साझेदारी की कमजोरियों को उजागर करता है। सरकार ने वादा किया है कि भविष्य के अनुबंधों में पारदर्शिता बढ़ाई जाएगी। जियो की सफलता (2025 में 50 करोड़ से अधिक यूजर्स) BSNL के संसाधनों पर कुछ हद तक निर्भर रही, लेकिन अब दोनों अपनी राह पर हैं। क्या यह 'उपभोग' था या 'सहयोग'? समय ही बताएगा, लेकिन CAG की नजरें अब नए अनुबंधों पर हैं।