भले ही सरकार मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी नीतियां बनाकर भारत की निर्यात क्षमता और क्षेत्रीय उद्यमियों को आगे बढ़ाने का दावा करती हो लेकिन एएआई द्वारा विभिन्न क्षेत्रीय हवाई अड्डों पर ग्राउंड हैंडलिंग सुविधा उपलब्ध करने के लिए टेंडरों में भाग लेने वाले कंपनियों की योग्यता के पैमाने में किये गए बदलाव छोटी कंपनियों को हिस्सेदारी लेने से रोकते हैं। बताते चलें की उक्त टेंडर में भाग लेने के लिए एएआई ने कंपनियों के लिए 35 करोड़ रू की उपलब्धता और शेड्यूल्ड एयरलाइन्स के साथ काम करने की योग्यता का मानक बनाया है।साफ़ शब्दों में कहा जाए तो एएआई द्वारा मानकों में किये गए ये बदलाव छोटी जेब वाले छोटे क्षेत्रीय उद्यमियों की टेंडर में हिस्सेदारी लेने से प्रतिबन्ध सुनिश्चित कर रहे हैं।
दिल्ली हाई की पीठ ने सेंटर फॉर एविएशन पालिसी,रीसर्च एंड सेफ्टी की याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के नारों को ढोंग बताते हुए कहा की केंद्र सरकार स्थानीय उद्यमियों को बढ़ावा देने को लेकर पाखंडी साबित हुई है। साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और एएआई को नोटिस जारी करते हुए जवाब माँगते हुए निर्देश दिया की टेंडरों के आबंटन की वैधता याचिका के निस्तारण पर आने वाले फैसलों पर निर्भर होगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा की यह बेहद दुखद बात है की एकतरफ सरकार मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात कर रही है वही दूसरी तरफ ऐसे टेंडर निकालती है जो छोटी कंपनियों को क्षेत्रीय हवाई अड्डों पर ग्राउंड हैंडलिंग सर्विसेस के लिए हिस्सेदारी लेने से रोकती है। यदि आप लोग वास्तव में इन छोटी कंपनियों को रस्ते से हटाना चाहते हैं तो ऐसा ही करिये। अपने भाषणों में आप बड़ी बड़ी बातें करते हैं। जिसमे आपका राजनीतिक नेतृत्व मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की बात करता है और स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने की बात करता है लेकिन आपकी कार्रवाई आपके शब्दों से मेल नहीं खाती। कोर्ट में एडिशन सॉलिसिटर जनरल संजय जैन एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया की तरफ से उपस्थित हुए थे। पीठ ने संजय जैन से सवाल किया की क्या उनके राजनितिक नेतृत्व को इसके बारे में पता है ? टेंडर में भाग लेने के लिए 35 करोड़ रुपये से ज्यादा की उपलब्धता और शेड्यूल्ड एयरलाइन्स के साथ काम करने की योग्यता वाले पैमाने पर हाई कोर्ट ने एएआई को कहा की आप बड़ी जेब और बड़े खिलाड़ी कंपनियों को ही अंदर आने देना चाहते हैं। यदि छोटी कंपनियों को विकसित नहीं होने दिया जायेगा तो कुछ ही बड़ी कंपनियां बचेंगी और मार्केट में अपने एकाधिकार के चलते सरकार पर अपनी शर्तें थोपना चाहेंगी।
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