जहानाबाद, बिहार, 5 नवंबर 2025: बिहार के इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक, शंकर बिगहा नरसंहार को आज 26 साल पूरे हो चुके हैं। 25 जनवरी 1999 को जहानाबाद जिले के शंकरपुर बिगहा गांव में रणवीर सेना के हमलावरों ने मात्र 10 मिनट में 23 निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस भयानक घटना में महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाया गया, और कई ग्रामीणों ने लाशों के ढेर के बीच मरने का नाटक कर अपनी जान बचाई। यह नरसंहार जातीय हिंसा और नक्सली संघर्ष की भयावहता का प्रतीक बन गया, जो आज भी बिहार की सामाजिक संरचना पर सवाल खड़े करता है।
रात के अंधेरे में करीब 100 से अधिक हथियारबंद हमलावर गांव में घुसे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उन्होंने 'रणवीर सेना जिंदाबाद' और 'रणवीर बाबा की जय' के नारों के बीच गोलियां चलानी शुरू कर दीं। हमलावरों ने महिलाओं और बच्चों को पॉइंट-ब्लैंक रेंज से सिर और पेट पर गोली मारी, जिससे गांव में चीख-पुकार मच गई। एक जीवित बचे ग्रामीण ने बताया, "मैंने देखा कि मेरी बहन को सिर में गोली मार दी गई। मैं जमीन पर गिर पड़ा और सांस रोककर लाशों के बीच छिप गया। हमलावरों ने मुझे छुआ भी, लेकिन सोच लिया कि मैं मर चुका हूं।" इसी तरह कई अन्य ने मृत्यु का अभिनय कर किसी तरह अपनी जान बचाई। हमलावरों का इरादा कम से कम 70 लोगों को मारने का था, लेकिन आसपास के गांवों धेवाई और करमचंद बिगहा से ग्रामीणों की हवाई फायरिंग ने उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया।
यह हमला माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) को नेस्तनाबूद करने की साजिश का हिस्सा था। रणवीर सेना, जो ऊपरी जातियों के हितों की रक्षा के नाम पर सक्रिय थी, ने दलितों और पिछड़ी जातियों को निशाना बनाया ताकि वामपंथी संगठनों की मजदूर एकता कमजोर हो। यादव समुदाय को निशाना नहीं बनाया गया क्योंकि वे भूमिहारों के समर्थन में थे। हमले का नेतृत्व पूर्व नक्सली बिनोद शर्मा ने किया, जो बाद में रणवीर सेना में शामिल हो गया था। रणवीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया ने हमले से 17 दिन पहले एक इंटरव्यू में साजिश का संकेत दिया था, लेकिन प्रशासन ने भाकपा-माले की चेतावनी को अनदेखा कर दिया।
हादसे में 10 लोग बुरी तरह घायल हुए। पुलिस कार्रवाई में देरी और पक्षपात के आरोप लगे। कमांडो फोर्स ने धोबी बिगहा में छापेमारी कर छह हत्यारों को पकड़ा, लेकिन तत्कालीन एएसपी महावीर प्रसाद ने उन्हें छुड़ा लिया। एक हफ्ते बाद 12 और गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन छह फरार रहे। इस नरसंहार ने बिहार में जातीय तनाव को चरम पर पहुंचा दिया और राष्ट्रीय स्तर पर न्याय की मांग उठी। हालांकि, कई आरोपी आज भी बेल पर हैं, और पीड़ित परिवार न्याय के इंतजार में तड़प रहे हैं।
आज के दिन पीड़ितों को श्रद्धांजलि देते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा, "शंकर बिगहा सिर्फ एक गांव का दर्द नहीं, बल्कि पूरे बिहार की असमानता की कहानी है। सरकार को अब भी न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।" यह घटना याद दिलाती है कि बिहार में शांति के लिए जातिगत सद्भाव जरूरी है।