जयपुर, 2 अक्टूबर 2025 | राजस्थान में एक दिल दहला देने वाली घटना ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक जेनेरिक खांसी सिरप, जो राज्य सरकार द्वारा सप्लाई किया गया था, दो बच्चों की मौत का कारण बना है। इस सिरप को सुरक्षित साबित करने के चक्कर में एक डॉक्टर ने खुद इसे पी लिया, लेकिन वह बेहोश हो गया। राज्य सरकार ने 22 बैचों पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। यह मामला 2021 दिल्ली कांड से जुड़े डेक्सट्रोमेथॉर्फन-आधारित सिरप से मिलता-जुलता है, जहां कई बच्चों की जान जा चुकी थी।
सिकार जिले के एक गांव में पांच साल के बच्चे को साधारण खांसी के इलाज के लिए यह सिरप दिया गया। कुछ ही घंटों में बच्चे की हालत बिगड़ गई – उल्टी, दौरे और अंततः मौत हो गई। परिवार के अनुसार, सिरप सरकारी अस्पताल से मिला था, जो गरीब परिवारों के लिए मुफ्त दवाओं के तहत वितरित किया जाता है। एक अन्य बच्चे की भी इसी सिरप से मौत की पुष्टि हुई है, जबकि कई अन्य बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं। स्थानीय डॉक्टर ने सिरप की सुरक्षा साबित करने के लिए इसे खुद पी लिया। वीडियो में दिख रहा है कि कुछ मिनट बाद ही वह बेहोश हो गया, जिसके बाद उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। डॉक्टर ने दावा किया था कि सिरप पूरी तरह सुरक्षित है, लेकिन यह घटना ने सबको स्तब्ध कर दिया।
राजस्थान सरकार ने तुरंत 22 बैचों के सिरप पर बैन लगा दिया है। स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी अस्पतालों को निर्देश जारी किए हैं कि यह सिरप तुरंत वापस लिया जाए। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने सैंपल लैब में भेज दिए हैं, जहां विषाक्तता की जांच हो रही है। प्रारंभिक रिपोर्ट्स में डेक्सट्रोमेथॉर्फन की अत्यधिक मात्रा या मिलावट का संदेह जताया गया है।
यह मामला मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से भी जुड़ गया है, जहां इसी तरह के सिरप से छह बच्चों की मौत हो चुकी है। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) ने दोनों राज्यों में संयुक्त जांच शुरू कर दी है। विपक्षी दलों ने सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की है।
दवा सुरक्षा पर फिर सवाल
यह घटना भारत में दवा सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताओं को उजागर करती है। 2021 में दिल्ली में इसी तरह के सिरप से 70 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी, जिसके बाद सख्त नियम बने थे। फिर भी, सरकारी सप्लाई चेन में लापरवाही बरकरार है। विशेषज्ञों का कहना है कि सस्ते जेनेरिक दवाओं में क्वालिटी कंट्रोल की कमी घातक साबित हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहले भी भारतीय सिरप्स में एथिलीन ग्लाइकॉल जैसी मिलावट की चेतावनी दी थी। परिवारों का गुस्सा फूट पड़ा है। मृतक बच्चे के पिता ने कहा, "सरकार मुफ्त दवा देती है, लेकिन जहर क्यों? क्या मेरे बच्चे की जान इतनी सस्ती है?" राज्य सरकार ने मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की है, लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या यह पर्याप्त है?
इस त्रासदी से सबक लेते हुए, दवा कंपनियों पर निगरानी बढ़ानी होगी। सुझाव है कि डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू हो और हर बैच की लैब टेस्टिंग अनिवार्य बने। राजस्थान स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, "हम पूरी सख्ती से जांच कर रहे हैं, दोषियों को सजा मिलेगी।" लेकिन अब समय है कार्रवाई का, न कि वादों का।
यह घटना न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश के लिए है। क्या हम अपने बच्चों को जहर पिलाते रहेंगे? जवाब सरकार और स्वास्थ्य तंत्र को देना होगा।